खेल महोत्सव की रूपरेखा से महापौर अनभिज्ञ
नगर निगम के खेल महोत्सव का समापन आज,
शामिल होंगे नगरीय निकाय मंत्री गौर
मनोज शुक्ला
सागर नगर निगम के खेल
महोत्सव का आज समापन होगा। लेकिन समापन के एक दिन पहले
तक महापौर श्रीमती अनीता
अहिरवार इस बात से अनभिज्ञ है कि आयोजन पर कितनी राशि
प्रतिदिन खर्च हो रही है।
यही नहीं खेल महोत्सव के नाम पर पत्रकारवार्ता के दौरान 25 लाख के
वजट उपलब्ध होने का दावा किया गया था।
लेकिन इसके संयोजक राजबहादुर सिंह के पास
महोत्सव के दौरान होने वाली गतिविधियों
का कोई भी निर्धारित शेड्यूल नहीं था। इस प्रकार 25
लाख की राशि बिना किसी पूर्व अनुमान अथवा
विधिवत योजना बनाकर आरक्षित नहीं की गई थी।
जिससे साफ जाहिर है कि संयोजक सहित लेखापाल और आयुक्त भी
इस तरह की गोलमाल
योजना में शामिल हैं। यदि वे पाकसाफ होते तो खेल महोत्सव के
आयोजन की विधिवत रूपरेखा
तय करवाते और मदवार बजट राशि निर्धारित कराते।
सागर। नगर निगम के खेल महोत्सव में 25 लाख के बजट की उपलब्धता के साथ शुरूआत 6 जनवरी को हुई लेकिन महापौर श्रीमती अनीता अहिरवार
को महोत्सव के संयोजक राजबहादुर सिंह ने अंधेरे में रखकर आयोजन की रूपरेखा बना ली।
यही वजह है कि महापौर को आयोजन से संबंधित किसी भी प्रकार की व्यवस्थाओं की
जानकारी नहीं है। जबकि महोत्सव के लिए बाकायदा महापौर परिषद की बैठक आयोजित की गई
थी। इस प्रकार देखें तो महापौर का कहना की उन्हें जानकारी नहीं है संदिग्ध लगता
है। इन विरोधाभाषी तथ्यों को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि महापौर भाजपा
पार्षदों की कठपुतली बनकर निगम में बैठी हैं। वे निगम द्वारा आयोजित कार्यक्रमों
में केवल मौनधारण करके स्वीकृति प्रदान कर देती हैं। बांकी हेरफेर और व्यवस्थाओं
की कमान आयुक्त और लेखापाल संभाल लेते हैं। इसके अलावा प्रचार प्रसार और मीडिया
में मैनेजमेंट का जिम्मा जनसंपर्क शाखा में कार्यरत अयोग्य कर्मियों के हवाले कर
दिया जाता है।
गौरतलब है कि खेल महोत्सव के आयोजन में
खेलों और खिलाडिय़ों की सुविधा की तुलना में प्रचार प्रसार पर जरूरत से ज्यादा राशि
खर्च की गई है। हालांकि महापौर तो जानकारी देने में असमर्थ रहीं। लेकिन महोत्सव से
जुड़े एक पार्षद ने दावा किया है कि करीब उदघाटन और समापन के दिन तक पांच से लेकर
सात लाख रूपए की राशि केवल प्रचार प्रसार और साज-सजावट पर खर्च कर दी गई है। दूसरी
ओर खिलाडिय़ों को ठीक तरीके से पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं कराया गया है। हालत यह
है कि आज समापन होने वाला है फिर भी प्राथमिक उपचार किट खिलाडिय़ों के लिए उपलब्ध
नहीं रही है। इसके अलावा पत्रकारवार्ता के दिन लगभग दस हजार रूपए की राशि
पत्रकारों के खाना के नाम पर खर्च करना दर्शाया गया है। जबकि बामुश्किल इस दिन
दिया जाने वाला खाना ढाई तीन हजार रूपए के आसपास का था। इसी प्रकार खेल में भाग
लेने वाले खिलाडिय़ों की व्यवस्थाओं के नाम पर प्रतिदिन करीब 5 हजार रूपए की राशि
खर्च करने का दावा भी निगम सूत्रों ने किया है। लेकिन यह राशि भी खर्च नहीं की गई
है। इस तरह कुल मिलाकर उद्देश्य खेल और खेल प्रतिभाओं को निखारने की वजाय खेल
संयोजक और भाजपा पार्षदों की जेबों को निखारने का रहा है।
खेल मैदानों की दुर्दशा
नगर निगम खेल महोत्सव के माध्यम से शहर की
खेल प्रतिभाओं को एक मंच प्रदान करने का दावा करती है। जबकि नगर निगम द्वारा
संचालित पदमाकर और म्यूनिसपल स्कूल के खेल मैदानों को निगम ने ही दुर्दशा का शिकार
बना दिया है। जहां पदमाकर स्कूल में खेल मैदान के नाम पर अतिक्रमण सहित नाम मात्र
का मैदान बचा है। वहीं पूर्व महापौर प्रदीप लारिया जिन्होंने खेल महोत्सव शुरू
कराया था उन्हीं के कार्यकाल में म्यूनिसपल स्कूल के खेल मैदान पर सुलभ काम्पलेक्स
का निर्माण करा दिया गया। रही सही कसर इसी मैदान पर दो प्राईमरी और माध्यमिक
स्कूलों के भवन बनाकर पूरी कर दी। इसी मैदान पर पहले से ही मंदिर भी बने हुए हैं।
फिल हाल की स्थिति में नगर निगम द्वारा हटाए गए अतिक्रमण वाले टपरे भी इसी मैदान
में रखे हुए हैं। इस तरह खेल मैदान के प्रति ऐसे रवैया वाले लोगों का खेल प्रतिभा
निखारने का दावा खोखला साबित हो रहा है। इसी प्रकार निगम की स्कूलों में प्रतिवर्ष
विद्यार्थियों सहित शिक्षकों की कमी भी होती जा रही है। स्कूलों के पढ़ाई के स्तर
में गिरावट आ रही है। लेकिन इस ओर निगम परिषद का कोई ध्यान नहीं है। म्यूनिसपल
स्कूल का वर्षों पुराना हाल खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है। निगम के नियमों के
मुताबिक ही इस भवन की उम्र पूरी हो चुकी है। इसलिए जरूरी है कि इस भवन को फिर से
गिराकर बनवाया जाए। लेकिन यहां भी निगम कई वर्षों से चूक कर रही है।
विकास में कोताही
नगर निगम विकास कार्यों में कोताही बरत रही
है। पिछले दो वित्तीय वर्षों से निगम के 48 वार्डों में विकास कार्यों के लिए निर्धारित राशि जारी नहीं की गई है।
जबकि प्रत्येक वार्ड के लिए चार लाख रूपए की राशि आवंटित की है। इस तरह वर्तमान
में प्रत्येक वार्ड 8 लाख रूपए के विकास कार्य बाट जोह रहे हैं। पिछले दिनों यह मुद्दा परिषद
की बैठक में भी सामने आया था। इसके बाद भी इस दिशा में अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई
है। दूसरी ओर विधायक निधि से एक ही सडक़ के लिए दो दो बार राशि दी जा रही है। लेकिन
सडक़ के लिए तो राशि जारी होती है फिर भी नालियों का निर्माण नहीं कराया जाता है।
जिसकी वजह से सडक़ों पर पानी बहता रहता है और आए दिन दो पहिया वाहनों को निकलने में
परेशानी होती है। इसी प्रकार अस्त-व्यस्त पाइप लाइनों को भी सडक़ बनाते समय
व्यवस्थित नहीं किया जाता है। जिससे दुर्घटनाओं का अंदेशा बना रहता है। फिल हाल भी
हाथीखाना स्कूल तरफ जाने वाले मार्ग को विधायक निधि से एक बार फिर राशि उपलब्ध
कराई गई है। लेकिन यहां पर भी निगम के उपयंत्रियों ने नाली का कोई प्रावधान नहीं
किया है। जिसका वार्डवासी विरोध कर रहे हैें। लेकिन कार्यपालन यंत्री वार्डवासियों
की बात नहीं सुनकर वे सलाह दे रहे हैं कि इस संबंध में विधायक से चर्चा करें। जबकि
निगम इस सडक़ की निर्माण एजेंसी है और उसी ने इस सडक़ का नक्शा डिजाइन, लागत आदि कार्य किया
है। इसलिए उनकी यह सलाह बेईमानी है।
नहीं मालूम उत्कृष्ट की परिभाषा
नगरीय निकाय मंत्री बाबूलाल गौर रविवार को
मुख्यमंत्री अधोसंरचना विकास के तहत तिली अस्पताल मार्ग का भूमिपूजन करने आ रहे
हैं। लेकिन महापौर अनीता अहिरवार को यह नहीं पता है कि इस सडक़ के लिए कितनी राशि
प्राप्त हुई है। साथ ही वे इस बात से भी अनभिज्ञ हैं कि उत्कृष्ट सडक़ की परिभाषा
क्या है। जागरण ने उनसे उत्कृष्ट सडक़ मापदंडों के संबंध में बातचीत की तो वे केवल
यह बता सकीं कि अन्य सडक़ों से कुछ अलग होगी। लेकिन स्पष्ट तौर से उन्होंने स्वीकार
किया कि उन्हें इस सडक़ के संबंध में पूरा व्यौरा नहीं पता है।
उल्लेखनीय है कि यह सडक़ पहले भी बनाई जा
चुकी है। साथ ही इस सडक़ के घटिया निर्माण का तथ्य भी उजागर हो चुका है। अब पुन:
इसी सडक़ निर्माण के लिए राशि ली गई है। लेकिन सडक़ बनाने के लिए निर्धारित है कि
दोनों ओर चौड़ाई बढ़ाई जाए जिससे आवागमन में सुविधा हो सके। इसके अलावा इस मार्ग
पर अधिकांश शादी घरों के कारण जाम की स्थिति हमेशा बनी रहती है। इन्हें भी
व्यवस्थित करने की दिशा में निगम ने ध्यान नहीं दिया है। इस तरह महापौर का यह दावा
भी सडक़ चौड़ी बनाई जाएगी। यह कहना गलत साबित हो रहा है क्योंकि सडक़ के एक तरफ
तालाब है तो दूसरी ओर रहवासी और व्यवसायिक परिसर मौजूद हैं। इस तरह सडक़ चौड़ी होने
का प्रश्न ही नहीं उठता है। इस लिए यह कहना गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री
अधोसंरचना निधि का इस सडक़ निर्माण पर व्यर्थ ही खर्च कराया जा रहा है।
निगम में जुआ-शराबखोरी
नगर निगम में यह तो सबको पता है कि यहां पर
हर काम के लिए भ्रष्टाचार होता है। लेकिन शहर के लोगों को यह कम पता होगा कि इस
परिसर में जुआ और शराबखोरी भी होती है। लोक निर्माण विभाग में कार्यरत एक उपयंत्री
की शराबखोरी की वजह से उन्हें कोई भी काम नहीं सौंपा जा रहा था। वे सुबह से लेकर
आफिस टाइम और बाद में शराब के नशे में डूबे रहते थे। इसलिए आयुक्त एसबी सिंह ने
उनसे सभी प्रकार के प्रभार छीन लिए थे। हालांकि इन दिनों उनके पास काम की वापसी हो
गई है। लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि उपयंत्री कार्यालय में पदस्थ एक निचले स्तर
के कर्मचारी की गारंटी पर उन्हें फिर से प्रभार सौंपा गया है। इसके अलावा खासतौर
से राजस्व शाखा के कर्मचारी कुछ अर्से से बगैर काम के हैं। इसलिए ऐसे कर्मचारी
परिसर में ही जुआ खेलकर अपना समय गुजार रहे हैं। जिसमें कभी कभार पार्षद और
कर्मचारी नेता भी शामिल होकर ऐसी बुरी आदतों को प्रोत्साहित करते हैं। उल्लेखनीय
है कि कुछ अर्से पहले एक पार्षद और एक कर्मचारी नेता के बीच शराबखोरी की वजह से ही
मारपीट की नौबत आ गई थी। यही नहीं कर्मचारी नेता ने बाकायदा इस बात की शिकायत भी
आयुक्त से की थी। इसके बाद भी जुआ और शराबखोरी का शिलसिला बंद नहीं हुआ है।
महापौर नहीं रखतीं मोबाइल
जागरण जब खेल महोत्सव के संबंध में महापौर
से चर्चा करना चाही तब पता चला कि उनके पास मोबाइल नहीं रखती हैं हालांकि मोबाइल
उनके पति हरप्रसाद जरूर रखते हैं और वे ही पूरी जांचपड़ताल करने के बाद अपनी
महापौर पत्नी से बात कराने का निर्णय करते हैं। ऐसा ही वाक्या शनिवार को हुआ। पहले
हरप्रसाद ने पूरी बात सुनी उसके बाद महापौर ने जागरण के प्रश्नों का उत्तर तो दिया
लेकिन उनका कोई मतलब नहीं निकला क्योंकि उनके पास हर प्रश्न का केवल यही उत्तर था
कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है। इस तरह वे महापौर की कुर्सी पर बैठकर कभी अपने पति
कभी भाजपा पार्षदों और कभी भाजपा के नेताओं की कठपुतली बनकर काम करने में लगी
हैं।
नगर निगम के भ्रष्टाचार
का खुलासा
सागर। नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष चक्रेश
सिंघई ने शनिवार को पत्रकार वार्ता में पिछले तीन वर्षों के दौरान हो रहे
भ्रष्टाचार का खुलासा किया। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्ष 2009-10 और 2010-11 के दौरान आडिट
आपत्तियों पर ध्यान नहीं दिया है। जिससे निगम की कैश बुक और बैंक बुक में करोड़ो
रुपए की राशि का अंतर दर्ज है। यही नहीं इसी प्रकार निगम बजट की पांच प्रतिशत राशि
संचित निधि के रूप में जमा की जानी थी। लेकिन यह राशि भी निगम ने जमा नहीं कराई
है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010-11 में 62585338 रुपए जमा नहीं हुए हैं जो निगम अधिनियम की धारा का उल्लंघन है। इसके अलावा
उन्होंने बताया कि झील संरक्षण योजना के साथ नगर निगम खिलवाड़ कर रही है। केन्द्र
सरकार द्वारा दी गई 21 करोड़ से अधिक राशि का अधिकांश बजट विज्ञापनों पर खर्च कर दिया गया। इस
प्रकार लगभग साढ़े पांच करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी यह योजना आज करीब-करीब बंद
पड़ी है। नेता प्रतिपक्ष ने दावा किया है कि आदर्श सडक़ सहित निगम में व्याप्त
भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर वे लोकायुक्त से शीघ्र ही शिकायत करेंगे। उन्होंने
यह भी आरोप लगाए कि शहर की स्कूलों में मानक स्तर का मध्यान्ह भोजन वितरित नहीं हो
रहा है। गंदी बस्ती वालों के लिए निर्माणाधीन मकान घटिया दर्जे के हैं। साथ ही
निगम की महत्वपूर्ण सीवरेज योजना अधर में लटकी है। केन्द्र ने इसके लिए 76 करोड़ की राशि उपलब्ध
कराई थी। लेकिन निगम और शासन की उदासीनता से यह लंबित है।
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