राजनैतिक दलों के खून में भी ग्रुप की मांग
जनसंदेश यात्रा का संदेश कहीं रह न जाए अधूरा
मौका मिल जाए किसी और को
मनोज शुक्ला,
सागर। राजनैतिक दलों की रगो में बहने वाला खून वैसे तो
मानव शरीर की भांति ही लाल रंग का होता है। लेकिन जिस प्रकार मानव शरीर के खून में
विभिन्न ग्रुप का रक्त मोजूद रहता है उसी प्रकार राजनैतिक दलों की रगो में बहने
वाले खून में भी ग्रुप का पलड़ा हर पल
भारी होता जा रहा है।जिससे लाग्ने लगा है कि राजनैतिक दलों में भी खून के ग्रुप की मांग जरूरी हो गया है।
हालांकि सभी राजनैतिक दल सहित भाजपा-कांग्रेस जैसे बड़े दल ग्रुप की बीमारी को
नकारते रहे हैं। फिर भी ग्रुप की राजनीति वर्तमान हालात में सभी दलों की
अनिवार्यता बन चुकी है। यदि ग्रुप के मुखिया से कार्यकर्ताओं का जुड़ाव नहीं रहता
है तो वे जिंदगीभर बिना ग्रुप के बेसहारे टाइप के कार्यकर्ता बनकर राजनीति के
मैदान में अपना सबकुछ लुटा बैठते हैं। शहर में भी इन दिनों भाजपा और कांग्रेस के विभिन्न
गुटों में संतुलन बैठाने के लिए कई तरह की तिकड़में भिड़ाई जा रही हैं।
सबसे पहले कांग्रेस की बात करते हैं जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया का शहर में
एक बहुत छोटा ग्रुप लंबे अर्से से मौजूद है। इस ग्रुप में कांग्रेसियों की संख्या
नगण्य के बराबर है। हालांकि ग्रुप छोटा है फिर भी सुरखी विधानसभा क्षेत्र में
विधायक गोविंद सिंह राजपूत की बदौलत इस ग्रुप की कांग्रेस में तूति बोलती है।
फिलहाल भी विधायक गोविंद सिंह अपने वर्चस्व को बरकरार रखने जनसंदेश यात्रा के
माध्यम से आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। वैसे भाजपा इस
क्षेत्र में पूर्ण रूप से उपेक्षित है। कभी भी यहां के क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को
विधानसभा से चुनाव लडऩे का मौका नहीं मिला है।
ऐसे में वर्तमान विधायक की पकड़ मजबूत होती चली है। हालांकि राजनैतिक जानकारों
की राय में भले ही सुरखी विधायक समय से पहले ही क्षेत्र में सक्रिय होकर चुनाव का
बिगुल बजा रहे हैं लेकिन इस बार उनके प्रति भी क्षेत्रीय लोगों में आक्रोश व्याप्त
है। दूसरी ओर भाजपा उन्हें मात देने की चुपचाप तैयारियों में जुटी है। जिससे लगता
है कि इस बार के चुनाव में भाजपा कोई ऐसा तुरूप का पत्ता एन वक्त पर खोलेगी। जिससे
सुरखी विधानसभा में पार्टी अपनी जीत सुनिश्चत करा सकेगी।
सुरखी विधानसभा क्षेत्र के लोगों में इन दिनों इसी प्रकार की बहस चल रही है।
चर्चा से जाहिर होता है कि विधानसभा क्षेत्र के राहतगढ़ क्षेत्र में भाजपा के लोग
पहले से ही सक्रिय हैं साथ ही उनमें सामर्थ भी है कि वे यहां से कांग्रेस की वोटों
में सेंध लगा सकते हैं। इसी प्रकार विधानसभा का सुरखी सहित ढाना से लगा हुआ
क्षेत्र भी वर्तमान विधायक के प्रति असंतुष्ट दिख रहा है। चूंकि इस क्षेत्र में
भाजपा के लोगों का रूझान रहा है। ऐसे में यहां से भी कांग्रेस को वोट मिलने का
संकट बरकरार है। लंबे अर्से बाद जैसीनगर क्षेत्र में भी स्थानीय कांग्रेस और भाजपा
के विभिन्न ग्रुपों के कार्यकर्ता सक्रिय हो चुके हैं। वे भी चाहते हैं कि सुरखी
विधानसभा क्षेत्र से बाहरी प्रत्याशियों को इस बार बाहर का रास्ता दिखाया जाए। वैसे यह केवल ख्याली
पुलाव है क्योंकि दोनों ही बड़े दलों के पास दमदार क्षेत्र के प्रत्याशी नहीं है।
पिछले चुनाव में भाजपा के राजेन्द्र सिंह मोकलपुर को भी यहां से हार का सामना
करना पड़ा था। इस बार भाजपा में शामिल लक्ष्मीनारायण यादव जो दो बार इस क्षेत्र से
प्रतिनिधित्व कर चुके हैं उनके पुत्र सुधीर यादव राहतगढ़ मंडी में अध्यक्ष भी रहे
हैं। जिन्हें इस क्षेत्र से दाव लगाकर विधानसभा चुनाव में उतारा जा सकता है। जो
कांग्रेस की जीत में बाधा खड़ी कर सकती है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी भी यहां से
वर्तमान सुरखी विधायक को टिकिट मिलने की स्थिति में अपना प्रत्याशी मैदान में उतार
सकती है। इस प्रकार की तैयारी पार्टी में अंदरूनी चल रही है। इसके अलावा पूरी
विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण की स्थिति भी पिछले चुनाव से ज्यादा अहम भूमिका
निभा सकती है।
ऐसे में कांग्रेस को ब्राह्मण वोटों के समीकरण के आधार पर फिलहाल की स्थिति
में नुकसान पहुंचने की स्थिति बन रही है। कुल मिलाकर सुरखी विधानसभा क्षेत्र के
इतिहास के लिहाज से किसी नए चेहरे को इस बार विधानसभा में जाने का मौका मिलने की
पूरी पूरी उम्मीद है। इस आधार पर यह कहना अतिशंयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि सुरखी
विधायक की जनसंदेश यात्रा और उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाए तो कोई नई बात नहीं
होगी।
ग्रुप की गूंज
कांग्रेस के पिछले दिनों संपन्न हुए कार्यकर्ता महासम्मेलन में सभी के ग्रुप
आका मौजूद रहे थे। सभी ने एक स्वर में ग्रुप को नकारते हुए विधानसभा चुनाव में जीत
को तबज्जो देने की बात कही थी। लेकिन हाल ही में शहर कांग्रेस में 11 अतिरिक्त नियुक्तियां ग्रुप की
बात को स्वीकार करने की वकालत कर रही हैं। इनमें से अधिकांश लोग सुरेश पचौरी के
कमजोर ग्रुप को मजबूत करने की कवायद है। इस तरह शहर कांग्रेस में पहले से ही दो
प्रवक्ता मौजूद थे। फिर भी सुरेन्द्र चौबे के रूप में एक और प्रवक्ता बनाया गया
है।
जिससे पार्टी के संविधान की अनदेखी भी की गई है। शायद यह पहला अवसर है जब इस
प्रकार की अतिरिक्त नियुक्तियां की गई हैं। इन नियुक्तियों से सवाल उठ रहे हैं कि
आखिर सागर में इनकी क्या जरूरत थी। दूसरी ओर अनुशासनहीनता के नाम पर प्रदेश
अध्यक्ष ने कमलनाथ के ग्रुप के लोगों पर कार्रवाई की। फिर भी शहर सागर में लंबे
अर्से से रामकुमार पचौरी, रफीक गनी सहित अनेक कांग्रेसी विभिन्न राजनैतिक दलों के लोगों के साथ
मिलकर केन्द्र सरकार की खिलाफत करते रहे हैं। लेकिन इन लोगों पर कभी भी अनुशासन हीनता की कार्रवाई नहीं की गई
है। जिससे लगता है कि पार्टी में ग्रुप के ऊपर भी कोई ऐसा ग्रुप मौजूद है जो
कांग्रेसियों के कामों को अनुशासन और अनुशासन हीनता को नए तरीके से परिभाषित करता
है।
ननि आयुक्त राजनीति के शिकार
ननि आयुक्त एसबी सिंह की फिर से नगर निगम में वापसी भाजपा के जनप्रतिनिधियों
ने कराई है। यह बात पिछले दिनों नगरीय निकाय मंत्री बाबूलाल गौर ने स्वयं स्वीकार
की थी। लेकिन इस एहसान के बदले में वे नियम कानूनों के पालन करने में चूक कर रहे
हैं। हाल ही में आयुक्त ऐसे लोगों को अपने नजदीक रखे हैं और उनके द्वारा निगम के
कामकाज में अवैधानिक रूप से हस्तक्षेप करा रहे हैं। गौरतलब है कि बबलू कमानी सहित
अन्य पूर्व पार्षद से हितग्राहियों को चेक वितरण कराए गए। अब सवाल उठ रहा है कि ये
दोनो ही लोग नगर निगम में कोई वैधानिक हैसियत नहीं रखते हैं। फिर आयुक्त ने इनसे
किस नियम के तहत हितग्राहियों को चेक वितरित कराए हैं। हालांकि दोनों लोगों की ही
पत्नियां वर्तमान में पार्षद हैं। लेकिन इस नाते भी वे इस प्रकार का काम नहीं करा
सकते हैं।
अस्तित्व की लड़ाई
भाजपा में इन दिनों अस्तित्व की लड़ाई चल रही है। इसी गुणाभाग के तहत शहर के
लोकप्रिय विधायक को अगले विधानसभा चुनाव लडऩे से वंचित करने की शुरूआत भी हो चुकी
है। पिछले दिनों से इस बात की जोरशोर से चर्चा है कि सांसद भूपेन्द्र सिंह सागर
विधानसभा से दावेदारी कर सकते हैं। साथ ही नगर निगम में अधिकांश भाजपा के पार्षदों
पर विधायक का प्रभाव मौजूद है। जिससे भी भाजपा के अन्य ग्रुप पीडि़त हैं। इसलिए
पिछले दो दिनों से यह चर्चा भी है कि महापौर अनीता अहिरवार को शीघ्र ही इस पद से
हटा कर सांसद के ग्रुप से किसी का मनोनयन कराया जा सकता है। इसके अलावा
मुख्यमंत्री के आगमन को भी सांसद के अस्तित्व को ऊंचा उठाने की कवायद के रूप में
देखा जा रहा है। इन परिस्थितियों और फिलहाल घोषित हो रही मंडल कार्यकारिणियों से
भी ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं।